Monday 14 January 2013

दूसरी आजादी की हाँक

अन्ना हजारे की टीम ने भ्रष्टाचार का मुद्दा लेकर जो आंदोलन छेड़ा था उसे व्यापक जनसमर्थन मिला था. इस जनसमर्थन में जनता के उत्साह और परिवर्तन की बलवती आकांक्षा को देखकर अन्ना हजारे ने इस आंदोलन को दूसरी आजादी की लड़ाई तक कहने में कोई संकोच नहीं किया. प्रकारांतर से उन्होंने दूसरी आजादी की लड़ाई की हाँक लगा दी थी. इस हाँक का आंदोलनरत जनता पर, विशेषकर युवकों पर गहरा असर पड़ा था. लगा था यह आंदोलन जन लोकपाल बिल पास कराके ही दम लेगा. और इसके पास होते ही भ्रष्टाचार पर लगाम लगना प्रारंभ हो जाएगा. किंतु जे पी आंदोलन के साथ राजनीतिक दलों ने जैसा खेल खेला था वैसा ही खेल इन दलों ने इस आंदोलन के साथ भी खेल दिया. जन लोकपाल बिल संसद से पास नहीं हो सका. दूसरी आजादी की हाँक जहाँ की तहाँ पड़ी की पड़ी ही रह गई.

ऐसा नहीं है कि ''दूसरी आजादी'' की बात अन्ना हजारे की कोई मौलिक उद्भावना है. दूसरी आजादी की बात तो जवाहर लाल के प्रधानमंत्रित्व काल के अंतिम समय से ही दबे छुपे होने लगी थी. जनता में तभी सुगबुगाहट होने लगी थी कि राजनीतिक रूप से वह स्वतंत्र तो हो गई पर उसे अभी कई क्षेत्रों में स्वतंत्रता हासिल करनी है. नेहरू काल में आर्थिक क्षेत्र में अभी उसे अमरीकन पी एल 480 की भिक्षा लेनी ही पड़ रही थी. 1964 के चीनी आक्रमण के समय उसे अमेरिका के आगे हाथ पसारना ही पड़ा था. लेकिन यह सबकुछ जवाहर लाल के व्यक्तित्व के प्रभाव के घटाटोप में दब गया था. दूसरी आजादी से जनता का मकलब था जीवन के हर क्षेत्र में आजादी. मसलन अर्थ के क्षेत्र, समाज की रचना के क्षेत्र, रक्षा के क्षेत्र, आत्मनिर्णय के क्षेत्र आदि आदि में. जयप्रकाश नारायण का संपूर्ण क्रांति के आंदोलन का आह्वान प्रकारांतर से दूसरी आजादी के पाने का ही आह्वान था. उनका संपूर्ण क्रांति से मतलब था जीवन की समग्र दिशाओं में क्रांति.

जे पी का आंदोलन अपने मकसद में पूरी तरह तो सफल नहीं हुआ पर सत्ता की एकरसता को तो उन्होंने भंग ही कर दी. इस आंदोलन की सबसे बड़ी उपलब्धि थी जनता के मुख में वाणी आ गई. जनता बोलना सीख गई. दूसरी आजादी एक कदम आगे सरक गई. लेकिन अन्ना हजारे के आंदोलन ने दूसरी आजादी की हाँक तो लगाई पर उसे एक कदम भी आगे नहीं बढ़ा पाया. हाँ राजनीतिक क्षेत्र को उसने एक हल्का झटका जरूर दिया है जिससे राजनीतिक वर्ग अपने पैर के नीचे की जमीन को अवश्य टटोलने लगा है.

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