Friday 4 January 2013

आइए कुछ पल सोचें

बलात्कार


अभी पिछले 16 दिसम्बर को दिल्ली के एक इलाके में एक मेडिकल स्टुडेंट के साथ बलात्कार की जो घटना घटी उसने देश के युवा वृद्ध सबको झकझोर कर रख दिया. यह बलात्कार की क्रूरतम और बर्बर घटना थी. इस घटना के घटने से सारा देश स्तब्ध होकर रह गया. युवा वर्ग तिलमिला उठा. उसके आक्रोशित मन में एकसाथ आँसू और क्रोध छलक पड़े. प्रतिक्रिया में यह वर्ग संसद मार्ग और इंडिया गेट पर उमड़ पड़ा. उनका आक्रोश प्रलयंकर था. आरंभ में सरकार ने इसे हल्के में लिया. दिल्ली की  शीला सरकार और केंद्र सरकार संवेदनहीन बनी रही. इस जनाक्रोश के प्रति इनके अपनाए हुए रुख से लगा कि ये सरकारें इस मुहिम में कोई राजनीति ढूँढ़ रही हैं. इन सरकारों की संवेदनहीनता आम लेगों को काटने को दौड़ने लगी. समाज के विभिन्न तबकों के संवेदनशील लोग भी जिससे जुड़ने लगे. इस आक्रोश को मिले जनसमर्थन ने राजनीतिकों के चरित्र पर प्रश्नचिह्न खड़ा कर दिया. टुच्चे राजनीतिक तो बेतरह  भड़क उठे. और उनके गैर जिम्मेदराना बयान आने लगे. लखनउ से राजा भैया ने कहा- इस मुहिम के बहाने कुछ  चेहरे अपने को चमकाना चाहते हैं. कोलकाता से राष्ट्रपति के पुत्र ने कहा लिपिस्टिक लगाकर और सज-धज कर लड़कियाँ दिन में सड़क पर प्रदर्शन करती हैं और रात में क्लब में जाती हैं. बेहद फूहड़ और अभद्र टिप्पणियाँ. ये अभद्र और अपमानकारी टिप्पणियाँ मूल रूप से नारी समाज की तरफ लक्ष्य कर कही गई हैं.

लेकिन इन अभद्र कटाक्षों के प्रति आंदोलित वर्ग असंयमित नहीं हुआ. क्रोध और आवेग से भरा यह वर्ग शांत और संयत होकर अपना आंदोलन चलाता रहा. वास्तव में दुनिया के इतिहास में यह एक अभूतपूर्व आंदोलन था जो भारतीय राजनीतिकों की समझ के परे था. दिल्ली प्रशासन पंगु बना हुआ था. गृहमंत्रालय के अधीन कार्यरत पुलिस प्रशासन इस आंदोलन से निपटने के लिए उन्हीं तरीकों को अपना रहा था जिससे दंगा फसादों से निपटा जाता है. फिर भी ये आंदोलित युवा बौखलाए अवश्य पर अपने को अनियंत्रित नहीं होने दिए. इस आंदोलन का आत्मनियंत्रण अभूतपूर्व था. केंद्र सरकार की संवेदना इस आंदोलन के प्रति तब उभरी जब उसे यह विश्वास हो गया कि यह आक्रोश से भरा आंदोलन स्वतः स्फूर्त है. कितना दुखद है कि भारत सरकार समस्याओं की तह तक जाने के बजाए उसमें राजनीतिक संभावनाओं को खोजने लगती है. उसको अपनी हिलती हुई सत्ता की अधिक चिंता होने लगती है. सच पूछा जाए तो आक्रोश और क्रोध से भरा यह आंदोलन अनियंत्रित बलात्कारों की घटनाओं से दुखी युवा-हृदय को मथती हुई पीड़ा की अग्निल अभिव्यक्ति थी. इसके समाधान के प्रति सरकारों और पुलिस प्रशासन की उदाशीनता और अकर्मण्यता ने युवाओं के क्रोध को और भड़का दिया.

अब यह आंदोलन थम गया है. लेकिन मेरी समझ से युवाओं के आक्रोश की चिनगारी अभी राख के भीतर दबी भर है. यह स्वागत योग्य है कि देर से ही सही केंद्र सरकार ने बलात्कारों को रोकने के लिए प्रयास शुरू कर दिया है.

इस समय देश भर में बलात्कार की समस्या पर विचार हो रहा है. लेकिन टी वी चैनलों और प्रिंट मीडिया में जो विचार आ रहे हैं उससे लगता है कि किसी समस्या पर कुछ पल ठहर कर सोचना हमने लगभग छोड़ दिया है. समस्या उत्तेजक हो तो हम उबाल खाने लगते हैं. हमारी तात्कालिक प्रतिक्रिया भयावह हो उठती है. सामान्य समय में हम दूरगामी समाधान के हामी भी हों तो भी ऐसे समय में हम उत्तेजना में आ जाते हैं और कुछ का कुछ बोलने लगते हैं.

आइए हम भी इस समस्या पर कुछ पल सोचें...क्रमशः

No comments:

Post a Comment