Wednesday 26 July 2017

आखिर नितीश को ही इस्तीफा देना पड़ा


बिहार में महा गठबंधन का नेतृत्व कर रहे नितीश को ही आखिर इस्तीफा देना पड़ा. उप मुख्य मंत्री तेजस्वी यादव पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे, उनके फर्मों पर सी. बी आई के छापे पड़े, एफ आई आर हुए, जाँच परख के बाद आरोप पत्र भी दाखिल हुए किंतु उनके और उनके पिता लालू प्रसाद यादव के लिए यह सब  सब झूठ है. तेजस्वी को  स्वयं इसका संज्ञान लेकर इस्तीफा दे देना चाहिए था. क्योंकि  भ्रष्टाचार के आरोप लगने पर नितीश ने अपने चार मंत्रियों के इस्तीफे ले चुके थे. लालू ने तब यह तर्क नहीं दिया कि आरोप लगना मात्र इस्तीफे का कारण नहीं बनता. इस बार नह पुत्र मोह में पड़ गए. उनको यह डर सताने लगा कि भ्रष्टाचार के आरोप में अगर तेजस्वी को अगर इस्तीफा देना पड़ा तो उनका भविष्य अंधकारमय हो जाएगा. वह यह नहीं सोच सके कि इस्तीफा देने से उसका कद और बढ़ सकता था. वह ऐसा इसलिए नहीं सोच सके क्योंकि वह फेयर राजनीति करने के आदी नहीं हैं. उनको शायद यह भरोसा नहीं है कि उनका लड़का तेजस्वी अपने बल पर राजनीति में जगह बना सकेगा. पत्नी राबड़ी देवी से तो उन्होंने येन केन प्रकारेण मुख्यमंत्रित्व करा लिया किंतु इसका मूल्य बिहार को चुकाना पड़ा.

नितीश ने तेजस्वी से इस्तीफा नहीं माँगा. हालाँकि भीतर से वह चाहते थे कि तेजस्वी इस्तीफा दे दें. पर इस्तीफा नहीं माँगा. उन्होंने तेजस्वी से सफाई माँगी पर तेजस्वी ने उसे पूरा नहीं किया. तब नितीश को लगा कि इस हालत में इस्तीफा मांगना उचित नहीं है. वह इस्तीफा माँगते हैं और गठबंधन टूटता है तो चतुर खिलाड़ी लालू इसका उपयोग कर गठबंधन तोड़ने का सारा दोष वह उन्हीं पर मढ़ देंगे. क्योंकि इस्तीफा लेने पर भी गठबंधन को टूटना ही था. क्योंकि काँग्रेस को भ्रष्टाचार के होने न होने से कोई मतलब नहीं है. ऐसी स्थिति में गेंद लालू के पाले में होती और वह जैसा चाहते इसका उपयोग करते. उन्हें बेहतर यही लगा कि वह इस्तीफा ही दे दें. विपक्ष से और गठबंधन के लोगों से वार्ता कर वह अपनी स्थितर मजबूत तर चुके थे

Saturday 22 July 2017

फेसबुक की जिज्ञासा ब्लॉग-स्पॉट पर


फेसबुक के लेखक मित्रों से एक जिज्ञासा-
फेसबुक मित्र पंखुरी जी ने अपने वाल पर अपनी एक कविता दी है जिसकी कुछ पंक्तियाँ निम्नवत हैं-
"--उसकी हर पंक्ति में 
नंगा शब्द है
कितने विशेषण बनाए जा सकते हैं उससे
कितने 'तरहों' (?) से प्रयोग कर
वाक्यों में उसका (?)
जैसे जपी जा रही हो
नंगेपन की माला"
मैंने उन्हें इंगित किया कि तरह का विशेषण तरहों नहीं होता, तरह ही विषेषण की तरह प्रयुक्त होता है. तो उन्होंने मुझे सीख दी ...
Pankhuri Sinha- Tarah ko tarahon bana lena, poetic licence ka istemaal karna hai.
साहित्य में poetic licence जैसी कोई चीज भी होती है मुझे नहीं मालूम है. आपलोगों से जानना चाहूँगा. यह licence कौन जारी करता है और वह किसके द्वारा अधिकृत किया गया है.
कहीं ऐसा तो नहीं कि sense की जगह licence लिख मारा है उन्होंने. तब सवाल उठता है नए लेखन को इतनी स्वतंत्रता है कि वह भाषा की स्वभाविकता के भी कान ऐंठ दे. poetic sense में शब्द का रूप बदलने का अधिकार है कवियों को पर अराजकता की हद तक नहीं.
पंखुरी सिन्हा पत्रकार भी हैं