Sunday 6 January 2013

आइए कुछ पल सोचें-3

बलात्कार-क्रमागत

आए दिन ऐसी घटनाओं के घटते रहने का एक कारण हमारी न्याय प्रणाली और उसके कार्यान्वयन की कमियाँ भी हैं. इसमें ऐसे मुकद्दमों के फैसले आने में वर्षों लग जाते हैं. इससे फैसले का न कोई मतलब रह जाता है न असर. इसकी नियति 'justice delayed justice denied' की सी हो जाती है. न्यायालय में मुकद्दमा दायर करने में पुलिस की आनाकानी तदनुसार देरी और मुकद्दमा लड़ने के दौरान तारीख पर तारीख डलवा कर फैसलों में देरी करा देने की वकीलों की नियति भी पीड़ितों की उपेक्षा कर पैसा बनाने की ही होती है उसे न्याय दिलाने की नहीं. यह न्याय दिलाने के प्रति उनकी संवेदनहीनता प्रदर्शित करती है और ऐसी घटनाओं की रोक थाम के बजाए उसको  बढ़ावा देने में ही सहायक होती है.

लेकिन मेरी समझ में उक्त कारणों से अधिक महत्व रखने वाला कारण मारे समाज में मूल्यहीनता के वातावरण का बन गया होना है. आज का हमारा समाज मूल्यहीनता के वातावरण में साँस ले रहा है. आज कोई ऐसा बलशाली नैतिक शिक्षक हमारे समाज में नहीं है जो प्रभावी तरीके से आज की हमारी जीवन प्रणाली के अनुसार हमारे लिए अत्याधुनिक जीवन मूल्यों को निर्देशित कर सके. आज जो भी प्रभावशाली व्यक्ति है, चाहे जिस विधि से उसने प्रभावशालिता प्राप्त कर ली हो, वही नीति उपदेशक है. आज का हमारा जीवन मूल्य तात्कालिकता है अर्थात तात्कालिक भौतिक लाभ. यह जीवन मूल्य हमपर इस कदर हावी है कि हमें कुछ पल ठहर कर सोचने की फुरसत नहीं देता कि हम जो कर रहे हैं वह ठीक है या गलत. बलात्कार एक बुरा कृत्य है, मानने को यह सभी मानते है किंतु समाज पर हावी राजनीतिक पार्टियाँ सदनों और संसदीय सीटों के लिए विधायक प्रतिनिधि चुनने में इस बुरे कृत्य को गैरमहत्वपूर्ण मानती हैं. इसके लिए ये उनके कानूनन दोषी सिद्ध न होने को ढाल बनाते हैं. और न्याय प्रणाली भी ऐसी कि पेंच में पेंच भिड़ाने से इनके विरुद्ध दायर बलात्कार के मुकद्दमों के फैसले आने में दसियों वर्ष लग जाते हैं. और फैसला आने तक वह चुना विधायक अथवा सांसद विकृत बलात्कारी या अन्य भ्रष्ट मानसिकता लिए क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हुए बहुत कुछ कर चुका होता है. यह केवल राजनीतिकों तक ही सीमित नहीं है. जीवन के हर क्षेत्र में और हर बुरे कृत्य में यही खेल खेता जाता हुआ दिखाई दे रहा है. ऐसे में बलात्कारी मानसिकता वालों के मन में कैसे प्रभावी रूप से यह बैठाया जा सकता है कि बलात्कार एक विकृत यौन कृत्य है. यह स्वस्थ मन का कृत्य नहीं है, बीमार मन का कृत्य है.

हमारी संस्कृति में पश्चिमी संस्कृति का घालमेल भी बलात्कारी मानसिकता को हवा देने में एक बड़ा कारण है. यह एक रिकार्डेड तथ्य है कि ईसाई मिशनरीज अपने धर्म के प्रचार के सिलसिले में आदिवासी इलाकों में जहाँ जहाँ गईं वहाँ वहाँ यौन व्यभिचार का प्रादुर्भाव हो गया. आदिवासी जातियों की जीवन चर्या में स्त्रियाँ अपने कबीले में सामान्य रूप से अर्द्ध नग्न विचरण करती हैं. लेकिन उन कबीलों में दुराचार या यौनाचार की घटनाएँ घटती नहीं सुनाई पड़ती. ईसाई मिशनरियों ने वहाँ पहुँचकर और तरह तरह से उन्हें प्रभावित करते हुए उनकी इस परंपरागत जीवन शैली में वर्जनाओं की बाढ़ ला दी. इन आचारगत वर्जनाओं ने आदिवासियों को उधेड़ बुन में डाल दिया. फलस्वरुप ऐसा या वैसा करने के चुनाव में उनमें अपसंस्कृति प्रवेश कर गई और यौनाचार की विकृति भी आ गई. आज का हमारा समाज भी अपसंस्कृति का दंश झेल रहा है. इसका शिकार हमारा युवा वर्ग अधिक है. विश्वविद्यालयों में, मेडिकल कालेजों, इंजीनियरिंग कालेजों और विभिन्न व्यावसायिक संस्थानों में इसका प्रभाव साफ साफ देखा जा सकता है. अपसंस्कृति की एक विकृति का नाम रैगिंग है. अखबारों में अकसर  पढ़ने को मिलता है कि रैगिंग में लड़कियों को ही लड़कियों को नंगा कर देने में हिचक नहीं होती. रैगिंग में लड़कों का लड़कियों के साथ छेड़ छाड़ करना तो सामान्य बात है. नैतिक बोध के प्रति ये स्टुडेंट अपने को विलकुल स्वच्छंद मानते है. गाँव-देहात का युवा वर्ग इसे गौर से देखता है. वह देखता है कि उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे इन युवकों के कृत्यों पर किस तरह प्रताड़ना और सजा देने का हवाई किला खड़ा किया जाता है और कैसे उनमें से निन्यानवे प्रतिशत बच निकलते हैं अथवा कहें बचा लिए जाते हैं. उनमें यह बात घर कर गई प्रतीत होती है कि वे युवा एक अनुशासन में रहकर भी स्वच्छंद विचर कर बच सकते हैं तो सड़कों पर स्वच्छंद विचर कर ये क्यों नहीं बच निकल सकते हैं. वर्तमान समाज सबसे अधिक पीड़ित इस काम वकसना से ही है. इसे जितना ही बलात रोकने की कोशिश होगी उससे अधिक बल से वह आच्छादित हो जाना चाहेगा. इससे हमें एक ऐसी विधि विकसित करनी होगी जो हमारी जीवन प्रणाली में कुछ स्वच्छ मल्यों को विकसित करने में सहायक हो. प्रशासनिक तंत्र अपना काम करता रहे और यह विधि अपना काम करे. इति.







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