Friday 13 December 2013

अपने पलों के अंतरिक्ष में

      मेरे अप्रकाशित
  'काव्य-पल' का एक पल

  प्रिये
  इसका बोध तुम्हें भी है कि
  जीवन की उमस में
  असबस होते रहकर भी
  एक दूसरे को समझने की
  हमारी समझ में
  कभी व्यतिक्रम नहीं हुआ.

  बीमारियां आर्इं
  आर्थिक थपेड़े झेलने पड़े
  कुछ उलझनों ने
  हमारे बीच दरारें भी डालीं
  हमारी अलग जीवन शैलियों ने
  हमें किनारों पर डाल दिया
  पर जीवन-प्रवाह की प्रचंड धाराओं की
  अलग अलग चोटें सहते भी
  परस्पर समझने की अपनी समझ को
  हमने न टूटने दिया न बिखरने.

  इस समझ से
  अणुओं के अंतरस्थ आकाश की
  दूरी पर सिथत
  विकर्षण के तनावों को झेलते हमने 
  अपने भीतर की
  और एक दूसरे के भीतर की भी
  करुणा को समझा.
 
  मेरे अंतर्मन को समझकर
  तुम्हारी करुणा ने
  मेरे प्रति तुम्हारे बोध को
  किस तरह कितना भिंगोया
  मैं नहीं जानता, पर
  तुम्हारे असितत्व की तरंगों में मैं
  कुछ विधायी अवश्य अनुभव करता हूं
  हां तुम्हारे असितत्वगत बोध से
  मेरी करुणा
  मेरे पोर पोर में जाग गर्इ है
  अणुओं के अंतराकाश के
  तनाव का अवबोध
  अब संसक्ति का बोध हो गया है.

  फिर भी
  समय के अपद्रव्यों ने
  अभी हमें अपना नहीं होने दिया है
  आओ, कुछ पल
  समय के प्रवाह में तिरें
  कुछ अपना हो लें.

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