अपने पलों के अंतरिक्ष में
प्रिये प्राणाधिके
आओ कुछ पल बैठें
कुछ बातें करें
बड़ी मुश्किल से मिले हैं ये पल
जीवन की उमस से छिटक कर
आओ कुछ पल अपने में
कुछ अपना सा हो लें
संवेदना के परमाणुओं से
अपने पोरों को तर कर लें
पृथ्वी के अंतरिक्ष में
हमने बहुत दौड़ लगा ली
दृश्य के पोरों को भेद कर
दृश्य के आकाश की थाह ले ली
आओ कुछ अपने ही भीतर के
अपने ही पलों के अंतरिक्ष में
प्रवेश करने के लिए
कुछ सूक्ष्म हो लें
फिर कोई पल मिले न मिले-
जीवन की त्वरा में
फिर कभी थिर हों न हों
आओ
समय की इस गति मे
थोड़ा थिर हो लें-
कब तक टँगे रहेंगें
सृष्टि के इन रंध्रों में
अस्तित्व की घिसती प्रतीति के लिए-
आओ कुछ पल बैठे
और
इस प्रतीति को अनुभूति में सरकाएँ
अनुभूति की करुणा से
भींग जाएँ-
आओ बैठें
कुछ मौन साधें
ताकि हमारे पोर पोर में
निःशब्द की संवेदना
पुर जाए-
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