Friday 8 March 2013

अपने पलों के अंतरिक्ष में


                        अपने पलों के अंतरिक्ष में
               
  प्रिये प्राणाधिके
  आओ कुछ पल बैठें
  कुछ बातें करें
  बड़ी मुश्किल से मिले हैं ये पल
  जीवन की उमस से छिटक कर

  आओ कुछ पल अपने में
  कुछ अपना सा हो लें
  संवेदना के परमाणुओं से
  अपने पोरों को तर कर लें

  पृथ्वी के अंतरिक्ष में
  हमने बहुत दौड़ लगा ली
  दृश्य के पोरों को भेद कर
  दृश्य के आकाश की थाह ले ली

  आओ कुछ अपने ही भीतर के  
  अपने ही पलों के अंतरिक्ष में
  प्रवेश करने के लिए
  कुछ सूक्ष्म हो लें
  फिर कोई पल मिले न मिले-

  जीवन की त्वरा में 
  फिर कभी थिर हों न हों
  आओ
  समय की इस गति मे
  थोड़ा थिर हो लें-

  कब तक टँगे रहेंगें
  सृष्टि के इन रंध्रों में
  अस्तित्व की घिसती प्रतीति के लिए-
              
  आओ कुछ पल बैठे
  और
  इस प्रतीति को अनुभूति में सरकाएँ
  अनुभूति की करुणा से
  भींग जाएँ-

   आओ बैठें
  कुछ मौन साधें
  ताकि हमारे पोर पोर में
  निःशब्द की संवेदना
  पुर जाए-
                                                      

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