Monday 16 December 2013

राजनीति की दिल्ली, दिल्ली की राजनीति-1

राजनीति की दिल्ली

दिल्ली महाभारत काल में इंद्रप्रस्थ नाम से जानी गई जब पांडवों ने खांडवप्रस्थ को इसी नाम से अपनी राजधानी बनाई. ग्यारहवीं सदी में राजा अनंगपाल ने संभवतः इसे दिल्ली नाम दिया. तेरहवीं सदी से सोलहवीं सदी के पूर्वार्द्ध तक यह सल्तनत काल की राजधानी रही. बाबर ने मुगल शासन की स्थापना इसी दिल्ली में की और इसे अपनी राजधानी बनाया. दिल्ली के दुर्भाग्य से अकबर ने कुछ समय के लिए अपनी राजधानी आगरा को बनाया. पर शाहजहाँ ने इसे पुनः दिल्ली में प्रत्यावर्तित कर दिया. और तब से आजतक यह दिल्ली हमारी राजधानी है. इस दिल्ली को मैं राजनीति की दिल्ली इस लिए कह रहा हूँ क्योंकि मगध के बाद देश की सारी राजनीति हमेशा यहीं से डील होती रही है. 

स्वतंत्रता की प्राप्ति के पूर्व तक दिल्ली राजनीति का ही हो के रही. यह राजनीति थी सत्ता को हथियाने, राजाओं की प्रभाव-सीमा को बढ़ाने और उनके अपने निजी हित को साधने की राजनीति. तब राजनीति प्रजा के हित के नाम पर नहीं की जाती थी. इसका चरित्र अधिनायकी था. पांडवों को इंद्रप्रस्थ (आज की दिल्ली) सत्ता के घरेलू झगड़े के समाधान में मिली थी राज्याधिकार के रूप में. अनंगपाल से लेकर बहादुरशाह जफर तक की राजनीति का आधार यही था. इस राजनीति में यह मान लिया गया था कि राजा का कर्तव्य ही है प्रजा की रक्षा और उसका हित करना. इसमें सत्ता उत्तराधिकार में मिलती थी. कभी कभी उत्तराधिकार के लिए जोड़ तोड़ में सशस्त्र विद्रोह किए जाते थे. अंग्रेजों ने राजनीति की दिल्ली को करवट लेने पर मजबूर कर दिया. अब इसका चरित्र सामंती हो गया. इसमें एक नए तत्व का प्रवेश हुआ- आजादी का. इसके लिए अंग्रेजों के विरुद्ध सामंतों ने विद्रोह की अगुआई की. पर यह केवल सामंतों का विद्रोह नहीं रहा. इस विद्रोह में सामंतों को एक नया आयुध हाथ में लेने को बाध्य होना पड़ा. वह आयुध था जनता का सक्रिय सहयोग. अबतक शासक ही राजनीति किया करते थे. लेकिन अब राजनीति का चरित्र सामंती नहीं रह गया. अब दिल्ली ने स्वयं ही राजनीति करना शुरू कर दिया. भारत के गणतंत्र घोषित होते ही दिल्ली की राजनीति खुलकर सामने आने लगी.
                                                                        आगे भी.....





No comments:

Post a Comment