Saturday 22 July 2017

फेसबुक की जिज्ञासा ब्लॉग-स्पॉट पर


फेसबुक के लेखक मित्रों से एक जिज्ञासा-
फेसबुक मित्र पंखुरी जी ने अपने वाल पर अपनी एक कविता दी है जिसकी कुछ पंक्तियाँ निम्नवत हैं-
"--उसकी हर पंक्ति में 
नंगा शब्द है
कितने विशेषण बनाए जा सकते हैं उससे
कितने 'तरहों' (?) से प्रयोग कर
वाक्यों में उसका (?)
जैसे जपी जा रही हो
नंगेपन की माला"
मैंने उन्हें इंगित किया कि तरह का विशेषण तरहों नहीं होता, तरह ही विषेषण की तरह प्रयुक्त होता है. तो उन्होंने मुझे सीख दी ...
Pankhuri Sinha- Tarah ko tarahon bana lena, poetic licence ka istemaal karna hai.
साहित्य में poetic licence जैसी कोई चीज भी होती है मुझे नहीं मालूम है. आपलोगों से जानना चाहूँगा. यह licence कौन जारी करता है और वह किसके द्वारा अधिकृत किया गया है.
कहीं ऐसा तो नहीं कि sense की जगह licence लिख मारा है उन्होंने. तब सवाल उठता है नए लेखन को इतनी स्वतंत्रता है कि वह भाषा की स्वभाविकता के भी कान ऐंठ दे. poetic sense में शब्द का रूप बदलने का अधिकार है कवियों को पर अराजकता की हद तक नहीं.
पंखुरी सिन्हा पत्रकार भी हैं

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