वर्तमान में बातों का घालमेल करना इतना आसन हो गया है कि किसी भी बात पर सहसा विश्वाश नहीं होता. अब डाक्टर संचेती को पद्म पुरस्कार मिला तो एक नया मसला खड़ा हो गया. उनपर आरोप लग गया कि उनहोंने अन्ना को गलत दावा दे दी जिससे उनकी सेहत ख़राब हो गई. अन्ना को आज कहना पड़ा कि नहीं उन्होंने गलत दवा नही दी .अब किसपर विश्वास किया जाय किसपर नहीं. आज यह आम प्रवृति बन गई है. समाज का ढांचा ही ऐसा बन गया है जिसमें यह प्रवृति निरादृत नहीं मानी जाती. कई बार ऐसा लगता है कि यह जानबूझ कर .किया जाता है. यह प्रवृति शीर्ष से लेकर निचले पायदान तक देखी जाती है. स्वस्थ समाज के निर्माण में इस प्रवृति का बना रहना घातक है.
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