बीमारी से उठने के बाद अन्ना ने अपना आन्दोलन फिर से शुरू कर दिया है. यह एक अच्छी खबर है.इस आन्दोलन को देश में एक नैतिक वातावरण भी बनाना है. आज की राजनीति उच्छ्रिंखल हो गई है. और
राजनीतिक लोग राजनीतिबाज. देखने में तो यह भी आता है की आज राजनीति एक धंधा बनकर रह गई है.
अतः इस आन्दोलन में अन्ना जी को फूंक फूंक कर कदम रखना होगा. वाणी का असंयम बुरा परिणाम भी ला सकता है. यहाँ तक की मजाक में कही गई बात भी जहर का काम कर सकती है. आज का राजनीतिक वातावरण भी जहरीला हो गया है. कुछ कुछ वैसा ही जैसा इंदिरा गाँधी के समय में हो गया था. तब जे. पी की भी
चरित्रहत्या से परहेज नहीं किया गया था.
अन्ना की टीम भी ठीक ही कर रही है. यह उन्ही उम्मीदवारों को वोट न देने की अपील कर रही है जो भ्रष्टाचार
के विरोध में हों और मजबूत लोकपाल के पक्ष में हो. अन्ना का यह विचार की ग्रामसभा संसद के ऊपर हो सुनाने में तो अच्छा लगता है पर इसका रूप क्या होगा दिमाग में स्पष्ट तौर पर उभर उभर पाता. इसके लिए
बहुत लम्बी लड़ाई लड़नी पड़ेगी.एक कानूनविद की तरह अन्ना जी को इसका ढांचा अपने दिमाग में रखना होगा.
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