Monday, 27 February 2012
anushesh: केजरीवाल का बयान
anushesh: केजरीवाल का बयान: संसद सदस्यों के सम्बन्ध में केजरीवाल ने जो बयान दिया है वह बहुत ही कडा है. संसद सदस्यों का इसपर भड़कना स्वाभाविक है. क्योंकि सा...
Sunday, 26 February 2012
केजरीवाल का बयान
संसद सदस्यों के सम्बन्ध में केजरीवाल ने जो बयान दिया है वह बहुत ही कडा है. संसद सदस्यों का इसपर भड़कना स्वाभाविक है. क्योंकि सांसद चुने जाने के बाद सत्ता के स्वाद का जो अहम् इनके अन्दर आ जाता है यह टिपण्णी उसपर एक हमला है. हालांकि ये जो बातें केजरीवाल ने एक मंच से कही है येही बातें मीडिया अक्सर आंकड़ों के माध्यम से कहती रहती है. इस पार्टी में इतने बाहुबली हैं, इतने अपराध के लिए आरोपित हैं जिनपर केस चल रहे हैं.
कितनी अजीब बात है कि कल इन आरोपितों को सजा मिल जाय तो ही इन्हें अपराधी माना जाएगा. क़ानून कि दृष्टि से यह बात ठीक लगती है. अब सोचने जैसी बात है कि जो व्यक्ति खुलेआम अपराध कर रहा है जिसे लोग देख समझ रहे हैं, क़ानून ने उसे अभी अपराधी नहीं ठहराया है. बस इसी पेंच का सहारा लेकर राजनीतिक दल उसकी दबंगई का लाभ वोट पाने के लिए उठाते हैं.प्रश्न उठाता है कि यह व्यक्ति जब चुनकर संसद में जाता है तो उसकी मानसिकता क्या रातों रात बदल जाती है ? क्या यह व्यक्ति स्वस्थ क़ानून बनाने का कभी समर्थक हो सकता है .क्या इसकी आपराधिक मानसिकता क़ानून बनाते वक्त काम कर रही नहीं होती है. कौन नहीं जानता है कि लालू, मुलायम और मायावती जैसे आय से अधिक संपत्ति के लिए आरोपित लोग कांग्रेस सरकार के केवल इसीलिए समर्थक हैं कि वह उनके केस को कमजोर करने में सहायक होगी. लेकिन क़ानून की पकड़ में अभी ये नहीं हैं. लालू के राज में अपराधियों की बाढ़ थी और वे अपनी सत्ता को बनाये रखने वके लिए उन्हीं के पक्ष में खड़े थे. नितीस राज में तो वह अपनी खोई शाख को पाने के लिए तो वह अपराध के लिए सजाप्राप्त शहाबुद्दीन से जेल में भी मिलाने गए थे. ऐसा करके लालू समाज के लिए कौन सा मूल्य स्थापित कर रहे थे .उत्तर प्रदेश में लोकायुक्त द्वारा आरोपित मंत्रियों को मायावती ने अपने क्मंत्रिमंडल से निकाला और मात्र वोट प्राप्त करने के लालच में उनमें से कुछ को भाजपा और कांग्रेस ने अपना लिया .आखिर इन पार्टियों के विचार में अपराध की क्या धारणा है. किस मूल्य की रचना कर रहे हैं ये दल समाज में.
आये दिन विधान मंडल में या संसद में मारपीट की घटनाएं होती रहती हैं. कुर्शियाँ फेंकी जाती हैं, जूते चप्पल चलते हैं, कुरते फाड़े जाते हैं. और ये ही लोग सदाचरण का जनता को सीख देते हैं, जनता के कल्याण का क़ानून बनाते हैं. राजनीति में ऐसी परिस्थितियों की भी अपेक्षा होती है. किन्तु ऐसी परिस्थितियां अपवाद की तरह होती हैं. लेकिन वर्तमान राजनीतिक परिस्थिति में तो सत्ता की केंद्रीय चेतना में देश और समाज नहीं हैं, सत्ता में केवल अपने को बनाये रखनेका ही ध्येय दिखाई देता है.और यह आम बात हो गई है.
वस्तुस्थिति देखी जाय तो केजरीवाल कोई गलत बात नहीं कह रहे हैं. उनकी बात कड़वी है. सामान्य आचरण में इसे विरोध में भाषा पर नियंत्रण खो देना देना कहा जा सकता है.लेकिन विना कड़ी टिप्पणी के आज कोई किसी बात पर ध्यान देना जरूरी नहीं समझता. मोरारजी देसाई के प्रधानमंत्रित्व काल में ओशो ने
संसद को पागलखाना तक कह दिया था.बड़ी आलोचना हुई थी इसकी राजनीतिक क्षेत्र में. संसद के सामने ओशो (तब के आचार्य रजनीश) को पेश करने तक की बात हुई थी. लेकिन ओशो ने जब संसद में उपस्थित होने की बात स्वीकार कर ली तब राजनीतिज्ञों की सिट्टीपिट्टी ग़ुम हो गई थी. आखिर संसद एक अवधारना ही तो है. लेकिन संसद सांसदों से बनती है.सांसदों के आचरण में खोट होगी तो वह कहाँ से सहस बटोर सकेगी एक शेर का मुकाबला करने में. मंसूर की क्रूरता से हत्या कर क्या मंसूर की बहाई हुई धरा को रोका जा सका था?
Friday, 24 February 2012
एक सशक्त नैतिक शिक्षक क़ी आवश्यकता
अभी मैं टी.वी. पर सी. एन. सिरिअल देख रहा था. इसमें महाभारत में वर्णित एक नीति कथा दिखाई जा रही थी. एक रानी का भेजा बहेलिया शिकार के लिए जंगल गया था. दिन भर दौड़ धूप के बाद भी उसे कोई शिकार नहीं मिला. दिन ढलते उसे सामने से जाते हुए एक हिरनी दिखाई दी. उसने धनुष उठाकर ज्योंही निशाना साधा हिरन बचने के लिए भागना छोड़ बहेलिये हे पास आ गयी और बोली , "बहेलिया जी मेरे परिवार में एक मेरा बेटा और मेरे पति हैं. पति बीमार हैं. यह जड़ी बूटी उनके लिए ले जा रही हूँ. यह बूटी खाकर वह अच्छे हो जायेंगें और बेटे को पाल पोस लेंगें. अतः आप मुझाए मारिये नहीं. मुझे जाने दीजिये. मैं वादा कराती हूँ यह बूटी अपने पति को देकर वापस आपके पास आ जाऊँगी .तब आप मुझे मारकर अपने परिवार के लिए आहार ले जाईएगा.बहेलिये को हिरनी की वादानिभायगी और परिवार के प्रति जिम्मेदारी की उसकी समझ को गुनकर भा दाई . वह द्रवित हो उठा और हिरनी को विना मारे उससे क्षमा मांग कर वापस चला गया. राजमहल जाकर हिरन को न लाने के लिए वह राजा से क्षमा माँगा और जो कुछ घटित हुआ था उसे सच सच बता दिया. राजा बहेलिये से बहुत प्रभावित हुए. हिरनी और बहेलिये के कृत्या उन्हें समाज के लिए बहुत ही नैतिक और अपरिहार्य लगे.
इस नीति कथा का दृश्य रूपांतरण देखकर अकस्मात् मेरे मन में आया कि जिस युग में यह कथा लिखी गयी उस युग के समाज में नैतिक भावना का प्रचार ऐसी ही नीति कथाओं के माध्यम से किये जाते थे. समाज के लोग अपने अपने इलाकों में भागवत कथा या रामायण कथा विद्वानों से कहवाकर अपनी नैतिक जिम्मेदारियों को निभाते और ताजा करते थे. इस देश में गांधी ने भी एक नैतिक वातावरण बनाया था. इसके लिए उनहोंने कुछ अनूठे प्रयोग किये थे . प्रयोग का माध्यम थी राजनीति और उनके सारे प्रयोगों पर राजनीती हावी होती चली गयी. और आज समाज के हर तंत्र पर राजनीती इस कदर हावी हो गयी है कि इससे इतर सोचना विसरे दिनों की बात हो गई है. आज नैतिकता और मूल्यों कि बातें बहुत होती हैं किन्तु उसपर टिकता कोई नहीं. भागवत और रामयण की कथाएं तो आम लोग आज भी सुनते सूनाते हैं. पर देखने में आता है कि कहीं भी ऐसे समारोह होते भी है तो राजनीतिबाज उसे लपक लेते हैं. आज हमारी भी स्थिति कुछ ऐसी है कि दफ्तरों में ,कालेजों में , नुक्कड़ पर ,अथवा फुर्सत के क्षणों में भी राजनीति कि ही चर्चा करते हैं और टेबुल चर्चा में ही सरकारें बना बिगाड़ देते हैं. बात का स्वाद बदलने के लिए थोड़ी नैतिकता और मूल्यों का बघार भी दे देते हैं.
गांधी के प्रयोग आज विफल दिखाई देते हैं. नैतिक शिक्षकों कि आज भरमार हैं पर सभी के पेट में दाढ़ी है. समय समय पर इनकी पोल खुलती रहती है. बुद्ध और कबीर जैसे शिक्षक आज दिखाई नहीं देते.नीति कथाओं की आज कोई भूमिका नहीं रह गई है. यह आज विचारणीय विषय है कि कौन सा माध्यम अपनाया जाय कि समाज में नैतिक आचरण का वातावरण बने. गांधी ने हैं राजनितिक आजादी दिलाई,. जवाहरलाल ने नए भारत कि आधारशिला राखी, लालबहादुर शास्त्री ने हमारे भी बाजुओं में बल है .कि याद दिलाई और जयप्रकाश नारायण ने हमें बोलना सिखाया.किन्तु ये सारे प्रयोग समाज के वाह्य आवरण पर कि गए. ये प्रयोग इस देश के मनुष्यों पर नहीं कि गए. मेरा मतलब है ये प्रयोग मनुष्यों के निर्माण के लिए नहीं किये गए. आज की भारतीय मनीषा प्रयोगधर्मी नहीं है. वह मुखर अधिक है. मैं अनुभव करता हूँ कि आज एक ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता है जो मनुष्य को केंद्र में रखकर प्रयोग करे .और प्रयोग का लक्ष्य एक ऐसे मनुष्य का निर्माण हो जिसमें अपने दायित्यों का बोध हो , जो आज के आधुनिकता और उत्तर आधुनिकता के वैज्ञानिक वातावरण के अनुकूल हो..
इस नीति कथा का दृश्य रूपांतरण देखकर अकस्मात् मेरे मन में आया कि जिस युग में यह कथा लिखी गयी उस युग के समाज में नैतिक भावना का प्रचार ऐसी ही नीति कथाओं के माध्यम से किये जाते थे. समाज के लोग अपने अपने इलाकों में भागवत कथा या रामायण कथा विद्वानों से कहवाकर अपनी नैतिक जिम्मेदारियों को निभाते और ताजा करते थे. इस देश में गांधी ने भी एक नैतिक वातावरण बनाया था. इसके लिए उनहोंने कुछ अनूठे प्रयोग किये थे . प्रयोग का माध्यम थी राजनीति और उनके सारे प्रयोगों पर राजनीती हावी होती चली गयी. और आज समाज के हर तंत्र पर राजनीती इस कदर हावी हो गयी है कि इससे इतर सोचना विसरे दिनों की बात हो गई है. आज नैतिकता और मूल्यों कि बातें बहुत होती हैं किन्तु उसपर टिकता कोई नहीं. भागवत और रामयण की कथाएं तो आम लोग आज भी सुनते सूनाते हैं. पर देखने में आता है कि कहीं भी ऐसे समारोह होते भी है तो राजनीतिबाज उसे लपक लेते हैं. आज हमारी भी स्थिति कुछ ऐसी है कि दफ्तरों में ,कालेजों में , नुक्कड़ पर ,अथवा फुर्सत के क्षणों में भी राजनीति कि ही चर्चा करते हैं और टेबुल चर्चा में ही सरकारें बना बिगाड़ देते हैं. बात का स्वाद बदलने के लिए थोड़ी नैतिकता और मूल्यों का बघार भी दे देते हैं.
गांधी के प्रयोग आज विफल दिखाई देते हैं. नैतिक शिक्षकों कि आज भरमार हैं पर सभी के पेट में दाढ़ी है. समय समय पर इनकी पोल खुलती रहती है. बुद्ध और कबीर जैसे शिक्षक आज दिखाई नहीं देते.नीति कथाओं की आज कोई भूमिका नहीं रह गई है. यह आज विचारणीय विषय है कि कौन सा माध्यम अपनाया जाय कि समाज में नैतिक आचरण का वातावरण बने. गांधी ने हैं राजनितिक आजादी दिलाई,. जवाहरलाल ने नए भारत कि आधारशिला राखी, लालबहादुर शास्त्री ने हमारे भी बाजुओं में बल है .कि याद दिलाई और जयप्रकाश नारायण ने हमें बोलना सिखाया.किन्तु ये सारे प्रयोग समाज के वाह्य आवरण पर कि गए. ये प्रयोग इस देश के मनुष्यों पर नहीं कि गए. मेरा मतलब है ये प्रयोग मनुष्यों के निर्माण के लिए नहीं किये गए. आज की भारतीय मनीषा प्रयोगधर्मी नहीं है. वह मुखर अधिक है. मैं अनुभव करता हूँ कि आज एक ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता है जो मनुष्य को केंद्र में रखकर प्रयोग करे .और प्रयोग का लक्ष्य एक ऐसे मनुष्य का निर्माण हो जिसमें अपने दायित्यों का बोध हो , जो आज के आधुनिकता और उत्तर आधुनिकता के वैज्ञानिक वातावरण के अनुकूल हो..
Thursday, 23 February 2012
सांसद बनने का उद्देश्य देशसेवा ?
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए मतदान का पांचवां चरण आज सम्पन्न हो गया. मतदान का प्रतिशत ५९ रहा. मतदान का यह प्रतिशत मतदान में युवा वर्ग की उत्साहित धमक को दर्शाता है. युवा वर्ग यदि इसी तरह अपने सांसदों के चुनाव में रूचि लेता रहा तो इसके निश्चित ही दूरगामी परिणाम होंगें. मुझे तो लगता है युवावों के इस तरह चुनाव में रूचि लेने का ही नतीजा है कि राजनीतिक पार्टियाँ बौखला उठी हैं.केंद्रीय कोंग्रेसी मंत्री तो जैसे बदहवास हो गए हैं इस्पात मंत्री श्री प्रकाश जैसवाल ने तो हाथ से सत्ता खिसकते देख प्रदेश में राष्ट्रपति शासन तक लागू करने का संकेत दे दिया है.- गनीमत है कि चुनाव आयोग बहुत चौकस और सक्रिय है..
सही तथ्य तो यह है कि अब सांसद बनने क़ी चाह देश सेवा के लिए कत्तई नहीं दीखती. सांसद बनकर या तो धन कमाना या अपराध को छिपाना ही राजनीतिज्ञों का उद्देश्य हो गया है. देखा यह जा रहा है क़ी सांसद बनते ही ये राजनीतिज्ञ रातों रात करोडपति हो जाते हैं.
सांसद बनने का उद्देश्य देशसेवा ?
सही तथ्य तो यह है कि अब सांसद बनने क़ी चाह देश सेवा के लिए कत्तई नहीं दीखती. सांसद बनकर या तो धन कमाना या अपराध को छिपाना ही राजनीतिज्ञों का उद्देश्य हो गया है. देखा यह जा रहा है क़ी सांसद बनते ही ये राजनीतिज्ञ रातों रात करोडपति हो जाते हैं.
सांसद बनने का उद्देश्य देशसेवा ?
Thursday, 16 February 2012
वर्तमान राजनीतिक परोदृश्य
उत्तर प्रदेश विधान सभा के लिए हो हो रहे प्रचार अभियान में राजनितिक दलों के धुआंधार प्रचार से वर्तमान भारतीय राजनीति का जो परिदृश्य सामने आ रहा है वह अद्भुत है.सामने सामनेी घटनाओं को कितनी सहजता से राजनीतिक दल अपने अपने पक्ष में अनूठी व्याख्या दे दे रहे हैं यह कबिल्रे तारीफ है. भ्रष्टाचार के एक आरोपित को यह तर्क देकर कि गंगा में गंदे नदी नाले भी आकर पवित्र हो जाते हैं.जबकि यही दल अपने से बड़े दल के आरोपितों को फंसी पर चढाने से कम पर तैयार नहीं है. एक केंद्रीय मंत्री चुनाव आयोग को खुल्लमखुल्ला धमकी देता है और और बचाव में अपने चुनाव घोषणापत्र की आड़ लेता है.यह देखें कि इस मंत्री महोदय ने तो प्रधान मंत्री के दबाव में ही सही अपने कहे पर खेद व्यक्त कर दिया पर उसी दल के दूसरे मंत्री ने संवैधानिक पदों का सम्मान करने कि हिदायत की अवहेलना कर अभी कल ही चुनाव आयोग को ठेंगा दिखा दिया. ये है बेनी प्रसाद वर्मा जी. अभी पिछले दिन राजीव गांधी ने मंच पर सपा के एक पर्चे को fad दिया.सब कुछ सामने है पर कोई उस पर्चे को सपा का घोशनापत्र कह कर उसे फाड़ने को अभद्रता बता रहा है तो कोई उस पर्चे को एक साधारण परचा बता रहा है.और सबसे अजीबोगरीब हरकत तो मिडिया की है. मिडिया उस पर्चे का नोटिस लेना जरूरी नहीं समझता .सही कहूं तो जिस तरह का वातावरण इंदिरा गांधी के समय में उत्पन्न कर दी गई थी वैसी ही स्थिति इस समय भी दिखाई दे रही है.
इंदिरा गांधी सत्ता सत्ताबने रहने के लिए सही सही कुछ भी करने के लिए तैयार रहती थी. उनहोंने राजनीति से प्रतिभाशाली और नैतिक लोगों को दूर कर दिया. आज भी कांग्रेस को चाहे जैसे भी हो सत्ता चाहिए ही. सत्ता तो अन्य दलों को भी चाहिए किन्तु सत्ता में ऊँचे पदों पर रहते हुए भी सत्तार्ध दल के लोगों ने जिस नैतिकताविहीन आचरण को बरता है और बारात रहे हैं उसने देश के वातावरण को बहुत कलुषित कर दिया है.राहुल गाँधी को इन्ही सब बातों का खामियाजा भुगत रहें हैं. और राहुल में राजनितिक पटुता भी नहीं है.शुरू शुरू में वह कुछ संयत भी लग रहे थे पर अब तो लग रहा है की राजनीति जैसेउनकी चेरी है. राजनीति में कुछ भी कहा और किया जा सकता है.
Monday, 13 February 2012
बाबा रामदेव और उनकी राजनीति
राष्ट्र की समस्याओं की चिंता करनेवालों में राजनीति के बाहर के व्यक्तियों में अन्ना के बाद बाबा रामदेव का नाम लिया जा सकता है. दोनों देश में बुरी तरह से बढ़ रहे भ्रष्टाचर को लेकर चिंतित हैं. किन्तु बाबा रामदेव स्विस बैंक में भारतीयों के जमा धन को लेकर अधिक मुखर हैं. अब वह राजनीति में भी दखल देने लगे हैं. लगता है रामदेव बाबा योग सिखाने की तरह इसे बहुत सरल मानते हैं. लेकिन वह भूलते हैं. सही माने में राजनीति, आज विकृत अवश्य हो गई है किन्तु है यह बहुत महत्वपूर्ण. धर्म से यदि व्यक्ति सम्हलता है तो राजनीति समूह को सम्हालती है. धर्म नीति है तो राजनीति क्रिया है.क्रिया की शुद्धता के लिए राजनीति की समझ चाहिए. पर बाबा रामदेव की राजनीति में की गई पहल को देखा जाय तो नहीं लगता की उनको राजनीति की कोई समझ है. अब प्रियंका ने अपने बच्चों को मंच पर क्या लाया बाबा रामदेव ने इसे बेशर्मी करार दे दिया. बच्चों को मंच पर लाने
के विषय में अलग अलग राय हो सकती है पर इसे बेशर्मी नहीं कहा जा सकता. रामदेव का यह वक्तव्य असंयत है. यह व्यक्तिगत टिपण्णी है. प्रियंका उनसे अधिक समझदार और राजनीतिक सूझ बूझ वाली लगती है. बाबा से अनुरोध है वह अपने अहंकार को परे हटा दें. अहंकार कितना बिस्फोटक होता है जे पी आन्दोलन इसका उदहारण है. इंदिरा गाँधी इसे समझ नहीं पाई थीं. इसीलिए इंदिरा गाँधी का अहंकार बौना पड़ गया था.रामदेव बाबा जरा सोचिये. आपके अहंकार से भी बड़ा अहंकार सामने आ गया तो क्या होगा. जे पी का अहंकार सर्जनात्मक था. पर आपके अहंकार में तो दूर दूर तक सर्जनात्मकता की झलक भी नहीं मिलती .गैरसर्जनात्मक अहंकारों की भिडंत हो जाये तो फिर सर्वनाश को ही आमंत्रित करने जैसी बात होगी.
Sunday, 12 February 2012
चुनाव आयोग ने सलमान खुर्शीद के जिस वक्तव्य को चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन माना था उसे यह कहते हुए फिर से दुहरा दिया कि मुझे फांसी ही क्यों न दे दो मैं तो उसे कहूँगा ही. यह आयोग को नागवार लगा. उसने इसकी शिकायत राष्ट्रपति से कर दी है. राष्ट्रपति ने प्रधानमंत्री को इस शिकायत को भेज कर उचित कार्यवाही के लिए भेज दिया है. दिग्विजय सिंह के अनुसार चुनाव घोषणा पत्र प्रकाशित कार्यक्रम की बातें करना गलत नहीं है. मेरे देखने में खुर्शीद ने जो भी कहा है चुनाव के दौरान वह आचासंहिता का उल्लंघन है या नहीं वर्तमान सन्दर्भ में विचारणीय नहीं है. विचारणीय यह है कि उनका वक्तव्य चुनाव आयोग को आचारसंहिता का उल्लंघन लगा तो आयोग की चेतावनी के बाद भी उसी बात को धमकी भरी चुनौती देते हुए मंच से कहना घोर आपत्तिजनक है. उनकी यह 'चुनौती' तो खुल्लम खुल्ला आचारसंहिता का उल्लंघन है.उनपर कोई न कोई कार्यवाही तो होनी ही चाहिए. लेकिन प्रधानमंत्री कोई कार्यवाही करेंगें इसमें संदेह है. क्योंकि प्रधानमंत्री अपने विवेक से कोई कार्यवाही नहीं कर सकते. उनको उन्हीं परामर्शदाताओं की राय पर काम करना पड़ता है जो उन्हें घेरे हुए है और जिन्हें इस बात की कोई परवाह नहीं है कि इससे कांग्रेस की सेहत बिगड़ती है या बनती है. उन्हें एक एकी बात की फिक्र रहती है कि आलाकमान उनसे उनसे खुश रहे.
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