राष्ट्र की समस्याओं की चिंता करनेवालों में राजनीति के बाहर के व्यक्तियों में अन्ना के बाद बाबा रामदेव का नाम लिया जा सकता है. दोनों देश में बुरी तरह से बढ़ रहे भ्रष्टाचर को लेकर चिंतित हैं. किन्तु बाबा रामदेव स्विस बैंक में भारतीयों के जमा धन को लेकर अधिक मुखर हैं. अब वह राजनीति में भी दखल देने लगे हैं. लगता है रामदेव बाबा योग सिखाने की तरह इसे बहुत सरल मानते हैं. लेकिन वह भूलते हैं. सही माने में राजनीति, आज विकृत अवश्य हो गई है किन्तु है यह बहुत महत्वपूर्ण. धर्म से यदि व्यक्ति सम्हलता है तो राजनीति समूह को सम्हालती है. धर्म नीति है तो राजनीति क्रिया है.क्रिया की शुद्धता के लिए राजनीति की समझ चाहिए. पर बाबा रामदेव की राजनीति में की गई पहल को देखा जाय तो नहीं लगता की उनको राजनीति की कोई समझ है. अब प्रियंका ने अपने बच्चों को मंच पर क्या लाया बाबा रामदेव ने इसे बेशर्मी करार दे दिया. बच्चों को मंच पर लाने
के विषय में अलग अलग राय हो सकती है पर इसे बेशर्मी नहीं कहा जा सकता. रामदेव का यह वक्तव्य असंयत है. यह व्यक्तिगत टिपण्णी है. प्रियंका उनसे अधिक समझदार और राजनीतिक सूझ बूझ वाली लगती है. बाबा से अनुरोध है वह अपने अहंकार को परे हटा दें. अहंकार कितना बिस्फोटक होता है जे पी आन्दोलन इसका उदहारण है. इंदिरा गाँधी इसे समझ नहीं पाई थीं. इसीलिए इंदिरा गाँधी का अहंकार बौना पड़ गया था.रामदेव बाबा जरा सोचिये. आपके अहंकार से भी बड़ा अहंकार सामने आ गया तो क्या होगा. जे पी का अहंकार सर्जनात्मक था. पर आपके अहंकार में तो दूर दूर तक सर्जनात्मकता की झलक भी नहीं मिलती .गैरसर्जनात्मक अहंकारों की भिडंत हो जाये तो फिर सर्वनाश को ही आमंत्रित करने जैसी बात होगी.
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