समय आ गया है कि देश के अन्नाओं से बात की जाए. यह सही है कि लोकपाल बिल संसद को ही बनाना है.
और ये सांसदों के विवेक पर हमला भी करते हैं. ये भूल जाते हैं कि ये संसद भी हमारे ही बीच से गए हैं. और
सांसद चुने जाने के पूर्व ये पार्टियों के चुने हुए होते हैं. और ये यह भी जानते हैं कि पार्टियों से टिकट पाने के लिए
कितनी मारामारी होती है. ऐसा नहीं कहा जा सकता कि इन टिकटार्थियों में इन अन्नाओं में से कोई नहीं होगा.
अतः अन्ना का साथ देने वाले इन अन्नाओं को अन्ना के प्रति वैसा वैसा ही डिवोसन पैदा करना पड़ेगा जैसा
गाँधी के प्रति गांधीवादियों का था. अन्ना को भी अपने विचार और भाषा पर ध्यान देना होगा. क्योंकि अन्ना और उनके अन्नाओं को यह भी करना है कि देश में एक नैतिक धारा भी बहने लगे.
देश में एक नैतिक क्रांति की अत्यंत आवश्यकता है. गाँधी युग में गाँधी के नाते जो नैतिक धारा बही उसीका नतीजा था की जवाहरलाल नेहरू भारत के प्रथम राष्ट्रपति के चुनाव में अपना मनचाहा नहीं करा सके . नेहरू जी
राजेंद्र प्रसाद को पसंद नहीं करते थे wah अपने pichhe चलाने वाले को ही इस इस पर देखना चाहते थे.लेकिन उस समय के सांसदों की नैतिकता और seewabhiman ne
और ये सांसदों के विवेक पर हमला भी करते हैं. ये भूल जाते हैं कि ये संसद भी हमारे ही बीच से गए हैं. और
सांसद चुने जाने के पूर्व ये पार्टियों के चुने हुए होते हैं. और ये यह भी जानते हैं कि पार्टियों से टिकट पाने के लिए
कितनी मारामारी होती है. ऐसा नहीं कहा जा सकता कि इन टिकटार्थियों में इन अन्नाओं में से कोई नहीं होगा.
अतः अन्ना का साथ देने वाले इन अन्नाओं को अन्ना के प्रति वैसा वैसा ही डिवोसन पैदा करना पड़ेगा जैसा
गाँधी के प्रति गांधीवादियों का था. अन्ना को भी अपने विचार और भाषा पर ध्यान देना होगा. क्योंकि अन्ना और उनके अन्नाओं को यह भी करना है कि देश में एक नैतिक धारा भी बहने लगे.
देश में एक नैतिक क्रांति की अत्यंत आवश्यकता है. गाँधी युग में गाँधी के नाते जो नैतिक धारा बही उसीका नतीजा था की जवाहरलाल नेहरू भारत के प्रथम राष्ट्रपति के चुनाव में अपना मनचाहा नहीं करा सके . नेहरू जी
राजेंद्र प्रसाद को पसंद नहीं करते थे wah अपने pichhe चलाने वाले को ही इस इस पर देखना चाहते थे.लेकिन उस समय के सांसदों की नैतिकता और seewabhiman ne
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