अन्ना अपने आन्दोलन को परिणाम तक पंहुचाना चाहते हैं. यह आन्दोलन अब जनांदोलन का रूप लेता जा रहा है. अन्ना ने जो मांग रखी हैं वे किसी संस्था के कर्मचारियों की मांग नहीं हैं. यह जनता की मांग है. जनता भ्रष्टाचार से बहुत पीड़ित है. यहाँ तक की जिन प्रतिनिधियों को वह सांसदों के रूप में चुन कर भेजती है वे भी उसके मालिक बन बैठते हैं और भ्रस्ताचार दूर करने के बजाय और लिप्त होते जाते हैं.
सरकार का दृष्टिकोण इस आन्दोलन के प्रति स्वस्थ नहीं है. इसके बिरोध में वह अजीब अजीब तर्क पेश करती जा रही है.कहती है कानून बनाना संसद का कम है लेकिन अन्ना की टीम कानून तो न कानून बना रही है न इसे लागू करने को कह रही है. वह तो सख्त लोकपाल बिल के लिए अपना एक ढांचा भर दे रही है. संसद के सांसदों को संसद के बहार का आदमी ही चुनता है. अब ये ही लोग एक संजीदा व्यक्ति के नेतृत्व में अपनी मनसा को सरकार के समक्ष रखती है तो उस व्यक्ति को बाहरी करार देकर संसद के काम में हस्तक्षेप मानती है. यह उचित नहीं जन पड़ता. जयप्रकाश नारायण के आन्दोलन पर भी इंदिरा सरकार ने भी ऐसे ही ओछे आरोप लगाये थे. और जे पी को आवारा लफंगों से निपटने वाली धरा में गिरफ्तार किया गया था. यह सरकार और इस सरकार के लोग भी अन्ना पर बड़े ही ओछे और अशिष्ट आरोप लगते जा रहे हँ.
सरकार लाख कोशिश कर ले इसे दबाने या कुचलने का. यह आन्दोलन रंग layega hi
सरकार का दृष्टिकोण इस आन्दोलन के प्रति स्वस्थ नहीं है. इसके बिरोध में वह अजीब अजीब तर्क पेश करती जा रही है.कहती है कानून बनाना संसद का कम है लेकिन अन्ना की टीम कानून तो न कानून बना रही है न इसे लागू करने को कह रही है. वह तो सख्त लोकपाल बिल के लिए अपना एक ढांचा भर दे रही है. संसद के सांसदों को संसद के बहार का आदमी ही चुनता है. अब ये ही लोग एक संजीदा व्यक्ति के नेतृत्व में अपनी मनसा को सरकार के समक्ष रखती है तो उस व्यक्ति को बाहरी करार देकर संसद के काम में हस्तक्षेप मानती है. यह उचित नहीं जन पड़ता. जयप्रकाश नारायण के आन्दोलन पर भी इंदिरा सरकार ने भी ऐसे ही ओछे आरोप लगाये थे. और जे पी को आवारा लफंगों से निपटने वाली धरा में गिरफ्तार किया गया था. यह सरकार और इस सरकार के लोग भी अन्ना पर बड़े ही ओछे और अशिष्ट आरोप लगते जा रहे हँ.
सरकार लाख कोशिश कर ले इसे दबाने या कुचलने का. यह आन्दोलन रंग layega hi
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