एक बार स्वर्ग की नर्तकी उर्वसी को अपने रूप यौवन पर बड़ा अभिमान हो गया था. उसने ऋषियों को चुनौती दे डाली थी- वे मेरा नृत्य देख कर अपने आपको रोक नहीं सकेंगे.
तो इंद्र ने उसके कहने पर एक नृत्य सभा का आयोजन किया और ऋषियों को भी बुला भेजा.
उर्वशी ने इंद्रसभा में वस्त्रउतार नृत्य प्रारंभ किया. नृत्य बहुत सुंदर था, सभी सभासद और ऋषि उर्वशी का नृत्य देख मंत्रमुग्ध हो गए.
तभी नृत्य करते करते उर्वसी ने अपना एक अंगवस्त्र उतार फेंका और नृत्य जारी रखा. एक ऋषि से उर्वशी का यह नृत्य देखा नहीं गया. उसने सभा छोड़ दी.
नृत्य रत उर्वशी ने इधर एक-एक अंगवस्त्र उतार कर फेकने शुरू किेए उधर एक-एक ऋषि सभा छोडकर जाने लगे, लेकिन एक ऋषि हठी निकला. उसने सभा नहीं छोड़ी. उर्वशी को लगा अब उसका गर्व टूटने ही वाला है. और तब उसने अपने शरीर का अंतिम वस्त्र भी उतार फेंका. नृत्य वास्तव में सुंदर और अद्भुत था. सभा में उपस्थित वह अंतिम ऋषि उठा और तालियों से उर्वशी के नृत्य की प्रशंसा की किंतु सभा से उठकर गया नहीं. बोला, उर्वशी, तुम्हारा नृत्य अद्भुत है परंतु एक कमी अभी भी रह गई है. एक वस्त्र अभी भी शेष रह गया है तुम्हारा, तुम उसे भी उतार फेंको. ऋषि का ईशारा था, यह देह भी तो एक वस्त्र ही है जिससे उसके होने (beeing) को सजाया गया है.
नृत्य रत उर्वशी ने इधर एक-एक अंगवस्त्र उतार कर फेकने शुरू किेए उधर एक-एक ऋषि सभा छोडकर जाने लगे, लेकिन एक ऋषि हठी निकला. उसने सभा नहीं छोड़ी. उर्वशी को लगा अब उसका गर्व टूटने ही वाला है. और तब उसने अपने शरीर का अंतिम वस्त्र भी उतार फेंका. नृत्य वास्तव में सुंदर और अद्भुत था. सभा में उपस्थित वह अंतिम ऋषि उठा और तालियों से उर्वशी के नृत्य की प्रशंसा की किंतु सभा से उठकर गया नहीं. बोला, उर्वशी, तुम्हारा नृत्य अद्भुत है परंतु एक कमी अभी भी रह गई है. एक वस्त्र अभी भी शेष रह गया है तुम्हारा, तुम उसे भी उतार फेंको. ऋषि का ईशारा था, यह देह भी तो एक वस्त्र ही है जिससे उसके होने (beeing) को सजाया गया है.
यह वाक्य कान में पड़ते ही उर्वशी नृत्य करते करते रुक गई. ऋषि का अर्थ उर्वशी की समझ में आया और वह पछाड़ खाकर ऋषि के पैरों पर लुढ़क गई. उसका सारा अभिमान चूर चूर हो गया था.
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