
माँ मैं जीना चाहती थी
पर जी नहीं पाई
अलविदा,
अब मैं चलती हूँ.
माँ तू रोना मत
मेरे भाईयों को भी मत रोने देना
अब तो मेरे भाई बहन भी
गिनती से परे हैं
मैं जब सफदरजंग अस्पताल में थी
तो मेरे साथ घटी घटना के विरोध में
सुना संसद की सड़कों पर
क्रोध उफन पड़ा था
शीत की लहरें लू बन गई थीं
उसकी तपन से देश के तथाकथित मसीहा
सनाका खा गए थे
दर्द में तड़पती हुई भी
मैं भाई बहनों और माँओं के
चेहरों पर तमतमाए
काली के रौर्द्र रूप की कल्पना कर
कुछ क्षण के लिए
स्फुरित हो जाती थी
लेकिन अब तो मैं वायु की तरंगों में
मिल गई हूँ माँ,
उन्हीं सड़कों को कल
मेरे शुभेच्छुओं ने
अपने आँसुओं के जल से सींच दिया था
ठंढी हवाओं के साथ
एक एक जन को छू कर
उनके मन में उमड़ते दर्द को
मैंने नहसूस किया
कितनी पीड़ा में थे वे मेरे प्रति
लेकिन माँ
उनके भीतर उफनते क्रोध की धाराएँ भी
उनके चित्त में चक्रवात बना रहीं थीं
देखना माँ
उनके क्रोध के चक्रवात में
यह देश डूब न जाए.
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