Monday 12 December 2016

नोटबंदी


विगत ८ नवम्बर को १००० और ५०० के नोटों के प्रचलन को बंद करने की मोदी जी की घोषणा ने देश में भूचाल-सा ला दिया. जनता में एक थर्राहट-सी आ गई - जाने क्या होगा. लेकिन इन पुराने नोटों के बदलने के कई तौर तरीकों ने जनता को कुछ आश्वस्त किया. इस कदम को भ्रष्टाचार के खिलाफ उठाया गया जानकर लोग बैंकों में लाईन में लग गए, नोट वापस करने या खाते में जमा करने के लिए और नए नोट पाने के लिए. राजनीतिज्ञों को तो मोदी जी की खिलाफत के लिए एक नया अस्त्र मिल गया. उनको तर्क मिला लाईन में लगे लोगों को हो रही तकलीफों का. बैंकों में प्रतिदिन लग रही विराट कतारों में लोगों को तकलीफें हो भी रही थीं. कई लोग तो लम्बी क़तार में देर तक लगे रहने की थकान सह नहीं सके. वे गस खाकर गिरने लगे. कईयों की मृत्यु तक हो गई. किन्तु जनता के धीरज ने जवाब नहीं दिया.  किसानों की खेती पर भी असर पड़ा. छोटे व्यापारी भी चरमराने लगे. फिर भी सीमा पर लगे जवानों के कष्टकर मुश्तैदी का उदाहरण लेकर नोटबंदी से हो रहे कष्टों को झेलते रहे और मोदी जी के नोटबंदी के निर्णय को वाजिब कदम ठहराते रहे. यहाँ तक कि इस कदम का विरोध कर रहे विपक्ष के क्षेत्र की जनता में भी अधिकांश, पत्रकारों के सामने मोदी जी के कदम की सराहना करते रहे. हालांकि लोगों ने यह अवश्य टिपण्णी की और अब भी कर रहे हैं कि इस कदम के कार्यान्वयन के लिए सरकार की तैयारी आधी अधूरी है.

लेकिन विपक्ष की भूमिका अद्भुत है. जनता को हो रही कष्टों का बहाना लेकर वह सरकार पर हमलावर है. उन्हें लग रहा है निकट भविष्य में होनेवाले चुनावों में इसका लाभ उन्हें मिल सकता है. ठीक वैसे ही जैसे बिहार के विधानसभा चुनाव के पहले साहित्य अकादमी के पुरस्कारों को वापस करने की मुहिम से हुआ था जो कुछ मार्क्सवादी लेखकों की हत्या और असहिष्णुता का बहाना लेकर हुआ था. बाद में इस हुए मोदी वेरोध की पोल खुल गई थी. विपक्ष इस बात की चर्चा तक करने से बच रहा है कि इस नोटबंदी ने कश्मीर में हो रही पत्थरबाजियों की पोल खोलकर रख दी है. पकिस्तान में आतंक को फीड करनेवाले आत्महत्या तक कर रहे हैं. देश में भी भ्रष्टाचार ने किस तरह अपने पाँव फैलाए हैं वह प्रतिदिन अवैध रूप से बटोरे जा रहे नए पुराने नोटों के पकडे जा रहे जखीरे से पता चल रहा है. इस भ्रष्टाचार में बैंक मेनेजर, बैंक कर्मचारी, अन्य साधारण कर्मचारी, कारोबारी और यहाँ तक कि राजनेता तक शामिल है. इन राजनेताओं में सांसद-विधायक तक अछूते नहीं हैं. इस विरोध में सबसे अधिक मुखर हैं - मायावती, ममता, राहुल और केजरीवाल.  मायावती जो अपने को दलितों की देवी कहती हैं, दलितों में विवेक जगाने के बजाय नोटों की माला पहनना अधिक पसंद करती हैं क्योंकि दलितों में विवेक जग जाएगा तो वे गैर-दलितों की तरह ऐसे प्रश्नों की बौछार कर देंगे जिससे उनकी जमीन खिसकने लग सकती है. विवेकहीन ही अपनी नेतृ को महारानी कहना पसंद कर सकते हैं. नोटबंदी से उन्हें कष्ट है क्योंकि चुनाव बिना नोट के जीते नहीं जा सकते. और इतने अल्प समय में बहुत सारे नए नोट जुटाए नहीं जा सकते. पुराने तो काम आयेंगे नहीं. अतः अपने समर्थकों को भ्रम में डालो ताकि उनका विवेक जागने न पाए. ममता ने जिस तरीके से मार्क्सवादी सरकार को अपदस्थ किया वह तरीका वह अब भी अपना रही हैं. और उस तरीके में बेशुमार नए नोटों की जरूरत पड़ेगी. दूसरे अगर नोटबंदी कहीं अपेक्षित प्रभाव डाल सकी तो ममता की सरकर प्रभावित होने लगेगी. और राहुल या कांग्रेस को तो यह नोटबंदी महाघोटाला लगती है, किसप्रकार यह कदम महाघोटाला है वह इसे संसद में ही बताएँगे जिससे मोदी जी की बोलती बंद हो जाए. जनता को इसका इन्तजार करना पड़ेगा. वैसे सभी जानते हैं कांग्रेस संभवतः अपने अस्तित्व की अन्तिम लड़ाई लड़ रही है. कहीं ऐसा न हो कि नोटबंदी के खिलाफ संसद में होनेवाला उनका भाषण कुछ अति पर चला जाए और उनकी पार्टी  को उसके डैमेज कंट्रोल में लग जाना पड़े. और केजरीवाल? राजनेताओं पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाकर ही ये पब्लिसिटी पाए, आरोपों से मुग्ध हुए नवयुवकों की सहानुभूति पाकर वह सत्ता में आए. मोदी जी उनकी नजर में एक अपशकुन की तरह हैं. इसीलिए वे उनका पुरजोर विरोध कर अपना अपशकुन टालते हैं. वह अपने को सच्चरित्र तो घोषित किये ही हैं, अपने समर्थकों को भी सच्चरित्रता का सर्टिफिकेट दे रखे हैं. पर देखने में आ रहा है कि इनका एक सांसद अभी अभी लोकसभाध्यक्ष द्वारा सांसद-चरित्र की अवहेलना करने पर दण्डित कर संसद की कुछ कार्यवाहियों से बचित कर दिया गया है. एक विधायक घरेलू हिंसा में आरोपित है. पर स्वयभू चरित्रवान राजनेता बेफिक्र हैं. जब केजरीवाल अपनी छींक आने का कारण भी मोदी को मानते हैं तो नोटबंदी के प्रत्यक्ष कारण तो मोदी ही हैं. यह नोटबंदी उनके लिए घोर अपशकुन है. राहुल तो इसे महाघोटाला ही कहकर रह गए, पर यह पंजाब की एक सभा में इस महाघोटाले को व्योरेवार बतानेवाले हैं.

एक बात तो विल्कुल स्पष्ट है कि विपक्ष अपने अपने कारणों से नोटबंदी के विरोध में है. किन्तु मोदी के मन में नोटबंदी को लागू करने के पीछे क्या उनके मन में महज भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई छेडने की ही बात थी. जब औरों के लिए चुनाव सामने है तो चुनाव तो भाजपा को भी लड़ने हैं. अगर विपक्ष इस नोटबंदी के पीछे भाजपा की चुनावी गंध को सूँघता है तो एकबारगी उसे झुठलाया तो नहीं जा सकता.

जो भी हो नोटबंदी के इस मुहिम में मोदी जी का धैर्य और साहस वर्तमान परिप्रेक्ष्य में गुनने लायक है. मिलिटरी वाले तो यह कहने से अपने को रोक नहीं पा रहे हैं कि वर्षों बाद ऐसा प्रधानमंत्री मिला है जिसे पाकर देश का बल कई गुना बढ़ गया है. इस मुहिम के पीछे कौन कौन सी मनसा मोदी जी के मन में है हमें नहीं मालूम पर इस मुहिम को सफल बनाने के उनके प्रयास इमानदारी से भरे हैं.

अब प्रश्न उठता है कि नोटबंदी वास्तव में क्या एक सही कदम है अर्थव्यवस्था के पक्ष में. क्या इस कदम से देश भ्रष्टाचारमुक्त हो जाएगा? इस एक कदम से भ्रष्टाचार से मुक्ति मिल जाएगी यह कहना खयाली पुलाव पकाने जैसा ही होगा, किन्तु इस लक्ष्य की ओर यह एक कारगर कदम अवश्य है. एक और बात साफ़ हो रही है कि भ्रष्टाचार की पाँव पसरता है इसके तौर तरीके भी ध्यान में आते जा रहे है जो investigation काम आयेंगे. मैं कोई अर्थशास्त्री नहीं हूँ किन्तु अर्थशास्त्रियों के विचार पढ़ता रहता हूँ. और यह बात सामने आ रही है कि कई अर्थशास्त्री अर्थव्यवस्था पर इसके पड़नेवाले अच्छे प्रभाव के प्रति आश्वस्त नहीं हैं लेकिन निराश भी नहीं हैं. हाँ डा मनमोहन सिंह ने अर्थव्यवस्था पर इसके पड़नेवाले विपरीत प्रभाव से आगाह अवश्य किया है. किन्तु इससे इस उठाए गए कदम का महत्त्व कम नहीं हो जाता. फिलवक्त ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर इसका प्रभाव परीशान करनेवाला है.  ऐसे समय में अर्थशास्त्रियों के विचारों को प्रमुखता मिलनी चाहिए राजनीतिज्ञों के शोर शराबे के बरक्स.

संभव है विपक्ष के नोटबंदी के विरोध में कुछ दम हो किन्तु जिस तरह से वह विरोध कर रहा है, यह वैसा ही है जैसा वह GST का विरोध कर रहा था. बहुत बाद में उसकी समझ में आया कि उस बिल को संसद से पास करवाना ही चाहिए.