Monday 8 October 2012

ब्लागरों की दुनिया

लगभग एक महीने बाद मैं अपना ब्लॉग लिखने बैठा हूँ। इस अवधि में मैं एक दूसरा काम पूरा करने में लगा था। साथ ही हिन्दी ब्लागरों के ब्लागों को भी बाजवक्त देखता रहा। मुझे किसिम किसिम के ब्लॉग पढ़ने को मिले।

ब्लागों की विषयवस्तु में विविधता है। इसमें कोई शक नहीं। किसी में ब्लॉग का आधार कविता को बनाया गया है, किसी में कहानी को। किसी में निबंध का आस्वाद है तो किसी में आलोचना का। किसी में ब्लॉग को ही पत्रिका का रूप दे दिया गया है। इन ब्लागों को पढ़ने में कहीं आनंद आता है तो कहीं ऊब सी होने लगती है। कई ब्लॉग ऐसे भी मुझे पढ़ने को मिले जो यात्रा संस्मरण के अच्छे नमूने हैं। कहीं  इतिहास या कला को भी आधार बनाया गया है। मुझे भोजपुरी में भी कई ब्लॉग पढ़ने को मिले जिसमें देशी  माटी और देशी  बोली का स्वाद मिलता है। कुछ ऐसे भी ब्लॉग देखने को मिले जिसमें नई नई जानकारियाँ देने को प्रमुखता दी गई है। ऐसे ब्लॉग पढ़ने में कभी रोमांच हो आता है तो कभी आह्लाद। इन ब्लागों में सृजनात्मक प्रतिभा के भी दर्शन होते हैं।

किन्तु अधिकांश  ब्लागरों ने अपने ब्लॉग का आधार राजनीति को बनाया है। इन ब्लॉगरों के ब्लॉग अनेक रंगों  में प्रगट होते हैं। ये कहीं चुटकी के रूप में हैं, कहीं आलोचना के रूप में तो कहीं विचार लेकर भी आए हैं। लेकिन अधिकांश में इसे भड़ांस निकालने का ही माध्यम बनाया गया है। भड़ांस निकालने के लिए भी विचार और भाषा के जिस रूप को अपनाया गया है वह सुरुचिपूर्ण नहीं है। लेकिन उल्लेखनीय है कि इन्हीं के पाठक भी अधिक हैं। यह इनके आगे लिखी टिप्पणियों से पता चलता है। इन टिप्पणीकारों पर मुझे थोड़ी हैरत भी होती है। क्योंकि कायस्थ के उद्भव पर एक हिंदी ब्लॉगर ने एक बहुत ही सामान्य  सा ब्लॉग लिखा था। उस ब्लॉग पर टिप्पणीकारों की लड़ी लग गई थी। मैंने भी कायस्थ के उद्भव और विकास पर एक शोधपूर्ण ब्लॉग लिखा। पर टिप्पणीकारों को तो छोड़ ही दें उस ब्लॉगर ने भी उसपर कोई टिप्पणी नहीं दी। पता नहीं उन्होंने पढ़ा भी या नहीं। इससे हिंदी ब्लॉगरों की स्थिति का पता चलता है। ये ब्लॉगर अपने ही रौ में दिखाई देते हैं।

यह ब्लॉग लिखने का मेरा उद्देश्य ब्लॉगों की स्थिति और ब्लॉगरों की सृजनात्मक मनस्थिति को समझना भर है। इस ब्लॉग के माध्यम से मैंने यह भी समझना चाहा है कि साहित्य में ये ब्लॉग किस रूप में स्थान पा सकते हैं, स्थान पा भी सकते हैं या नहीं।  इतना तो अवश्य समझ में आ रहा है कि कुछ भी लिखे को प्रकाशित करने  की इच्छा की पूर्ति कर लेने भर से ऐसा नहीं हो सकता। हिंदी ब्लॉगरों की दुनिया में अधिकांश ब्लॉगरों की मनस्थिति ऐसी ही दिखाई देती है।