Thursday 2 August 2012

भ्रष्टाचार का समाजशास्त्र

कल टी वी पर समाचार आया कि अन्ना  3 अगस्त को सायं पांच बजे  अपना  अनशन तोड़ेंगे . अन्ना ने जिस तरह की  घोषणाएं  कर रखी थीं उससे यह उम्मीद बधी थी कि यह आन्दोलन जरूर कुछ रंग लाएगा .पर ऐसा  नहीं  हो  सका. सरकार  वार्ता के लिए भले ही आगे न आती इस आंदोलन को प्रचंडता की  हद तक ले जाया जाता तो अधिक अच्छा होता .लगता  है आन्दोलन के शुभेच्छु कुछ प्रबुद्ध लोगों  की  इसकी कमजोरियों पर पैनी नजर थी. सो उन लोगों ने अन्ना को अनशन तोड़ने  की  सलाह दे डाली .यह अच्छा ही हुआ कि अन्ना ने  नकी सलाह मान ली .अरविंद केजरीवाल  और उनके साथी ऐसे आन्दोलनों के अभ्यस्त नहीं हैं .फिर यह आंदोलन एक लक्ष्य लेकर चलता नहीं दीख रहा था .इस आंदोलन का नेतृत्व और कमांड अन्ना को खुद संभालना चाहिए और इसका लक्ष्य एकमात्र लोकपाल विल को पास कराना  होना चाहिए .यह कितना अटपटा लगता है कि जिसके सामने आप अपनी मांग रख रहे  हैं उसे ही महाभ्रष्ट की संज्ञा से अभिहित भी कर रहे हैं .महाभ्रष्ट आपकी बातें सुनेगा ही क्यों. एक और बात . अपनी  मांग मनवाने के लिए इस आंदोलन का मुख्य हथियार आक्षेप ही दिखाई देता है . 

मेरी समझ में भ्रष्टाचार केवल राजकीय संस्थाओं तक ही सीमित नहीं है . यह हमारे पूरे समाज में गहरी जड़ें जमा चुका है . मंत्री से लेकर संतरी तक इस रोग के शिकार हैं . शिक्षासंस्थान भी इससे बचे नहीं  है जबकि इन संस्थानों में  देश का भविष्य ढलता है . 

मैं एक शिक्षासस्थान से सम्बंधित रहा हूँ..छात्रों की उत्तरपुस्तिकाओं का हम मूल्यांकन करते हैं और पारिश्रमिक के लिए कोषागार में अपना बिल पेश करते हैं .बिल पास होकर मिलने में कुछ समय लगता है .कभी कभी बिल  भरने में कुछ प्रविष्टियाँ छूट जाती हैं जिसके कारण बाबू बिल लौटा देते हैं .इससे बस का किराया-भाडा देकर  कोषागार तक आनेवालों की परेशानियां बढ़ जाती हैं .अतः दुबारा तिबारा उन्हें आना न पड़े वे बिल जमा करते  समय ही बाबुओं को सुविधा शुल्क दे देते हैं . इससे बाबुओं को लाभ भी हो जाता है और दूर से आनेवाले कई बार आने की परेशानी से भी बच जाते हैं .कोषागार के आस पास रहने वाले भी कभी कभी अपना धीरज खो देते हैं  और जल्दी से बिल पास कराने के लिए सुविधा शुल्क देने से बाज नहीं आते . फिर बाबुओं की आदत बन जाती  है .बाबू पहले खुद आचारभ्रष्ट हुआ या उसे आचारभ्रष्ट किया गया . फिर यह भ्रष्ट आचार चल पडा और भष्टाचार ने अपने पाँव पसार लिए. यहीं एक रोचक प्रसंग की चर्चा कर दें. यह घटना गोरखपुर की ही है .किसी काम के  लिए गोरखपुर कलेक्ट्रेट के बाबुओं ने एक बुजुर्ग महिला को इतना दौडाया की वह महिला आजिज आकर एक दिन दी एम् के कमरे में चली गई. उसने अपने आँचल में बंधे कुछ सिक्के निकाले और दी एम् की मेज पर रख  दिए और कहा-बाबू हमार करा देहल जा. दौरत दौरत हालत खराब हो गईल बा. यह देखकर  दी  एम् साहब  हक्का बक्का होकर रह गए .यहाँ केवल बाबुओं का जिक्र है. पर यही हाल हर स्टार पर है .कहीं छोटे, कहीं बड़े, कहीं  विशाल स्टार पर .बड़ी पूंजी वाले से कमीशन का नाम देते हैं और कम पूंजी वाले इसे सुविधा शुल्क कहते  हैं .

अन्ना जी को भ्रष्टाचार के इस समाजशास्त्र को राग द्वेष से रहित होकर समझना चाहिए .उनके 'लोकपाल बिल  पास करो 'के आन्दोलन में आक्षेप को अधिक तरजीह दी जा रही है जो आन्दोलन के राग द्वेष से पीड़ित होने का प्रमाण देता है .