Tuesday 25 October 2011

कोर्ट की निगाह में अन्ना का आन्दोलन

अन्ना के अनसन स्थल के किराये में कमी के लिए दाखिल याचिका को ख़ारिज करते हुए जो कुछ कहा है वह विचारणीय है. लोकपाल कानून अभी बना नहीं है. संसद में गंभीर बहस हो रही है. ऐसे में संसद के बाहर बहस  का क्या अर्थ. अन्ना के लिए यह सत्याग्रह हो सकता है पर न्यायालय तो इसे संसद का अपमान  कहेगा .अगर कहा जाय कि टीम अन्ना अपने प्रस्ताव अनुसार कानून बनवाना चाह रही है या बनवाने का हाथ कर रही है तो बहुत गलत नहीं होगा. हाँ अन्ना के यह कहने में भी बल है कि लोकपाल कानून जनता की इच्छा के अनुसार
बनना चाहिए. सांसद भी तो जनता के इच्छानुसार ही चुने जाते हैं. ऊपरी तौर पर यह बात तर्कसंगत अवश्य
लगती है किन्तु वास्तविकता यह है कि जो सांसद या विधायक चुने जाते हैं वे पार्टियों के द्वारा थोपे गए लोग   होते हैं. जो घोषित रूप से अपराधी हैं पार्टियाँ अपना उम्मीदवार बनाने से बाज नहीं आतीं. कहती हैं अभी उनको सजा नहीं मिली है. जनता को इन दागदारों में से ही अपना सांसद चुनना पड़ता है. अब ये दागदार सांसद जनता की इच्छा का कितना ख्याल रखेंगे संदेह से परे नहीं है.टीम अन्ना का आन्दोलन जनांदोलन है.
अतः अन्ना के अनसन पर उंगली उठाना उचित नहीं लगता. यह संसद को नहीं जनता का अपने सांसदों तक
अपनी बातें पहुँचाने का उसका तरीका है. सांसद कानून का यह रूप लेकर अपने क्षेत्र की जनता के पास नहीं
गए थे .